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दिया अपनी ख़ुदी को जो हम ने मिटा वो जो पर्दा सा बीच में था न रहा रहा पर्दे में अब वो न पर्दा-नशीं कोई दूसरा उस के सिवा न रहा रहा पर्दे में अब वो न पर्दा-नशीं कोई दूसरा उस के सिवा न रहा दिया अपनी ख़ुदी को जो हम ने मिटा ना थी हाल की जब हमें अपनी ख़बर रहे देखते औरों के ऐब-ओ-हुनर ना थी हाल की जब हमें अपनी ख़बर रहे देखते औरों के ऐब-ओ-हुनर पड़ी अपनी बुराईयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा पड़ी अपनी बुराईयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा दिया अपनी ख़ुदी को जो हम ने मिटा ज़फर आदमी उसको न जानियेगा ज़फर आदमी उसको न जानियेगा वोह हो कैसा ही साहिब-ए-फ़हम-ओ-ज़क़ा जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ-ए-ख़ुदा न रहा जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ-ए-ख़ुदा न रहा दिया अपनी ख़ुदी को जो हम ने मिटा