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रही हैं दाद तलब उनकी शोख़ियाँ हम से रही हैं दाद तलब उनकी शोख़ियाँ हम से अदा-शनास बहुत हैं मगर कहाँ हम से अदा-शनास बहुत हैं मगर कहाँ हम से सुना दिये थे कभी कुछ गलत-सलत किस्से सुना दिये थे कभी कुछ गलत-सलत किस्से वो आज तक हैं उसी तरह बद-गुमाँ हमसे वो आज तक हैं उसी तरह बद-गुमाँ हमसे ये कुंज क्यूँ न ज़िआरत-गहे मुहब्बत हो ये कुंज क्यूँ न ज़िआरत-गहे मुहब्बत हो मिले थे वो इन्ही पेड़ों के दर्मियां हम से मिले थे वो इन्ही पेड़ों के दर्मियां हम से हम ही को ज़ोक़-ए-नज़ारा नहीं रहा वरना हम ही को ज़ोक़-ए-नज़ारा नहीं रहा वरना इशारे आज भी करती हैं खिड़कियां हमसे इशारे आज भी करती हैं खिड़कियां हमसे हर एक रात नशे में तेरे बदन का खयाल हर एक रात नशे में तेरे बदन का खयाल न जाने टूट गई कै सुराहियां हम से न जाने टूट गई कै सुराहियां हम से रही हैं दाद तलब उनकी शोख़ियाँ हम से अदा शनास बहुत हैं मगर कहाँ हम से