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सुन चाँद मेरी ये दास्ताँ, मैं कहूँ तुझे या के न कहूँ तेरी चाँदनी तेरे पास है, मुझे ये बता मैं कहाँ रहूँ सुन चाँद मेरी ये दास्ताँ खिली रैन में देखो चैन से, है ये सारा आलम सो रहा तेरे इन सितारों की छाँव में, मैं अकेला चुप-चुप रो रहा लगी आग बिरह की अँग में, मैं सहूँ इसे या के न सहूँ मैं सहूँ इसे या के न सहूँ सुन चाँद मेरी ये दास्ताँ वो नज़र जो दिल में उतर गई, जैसे चुभ गया कोई शूल हो वो हथेली पर तेरा मुख सजा, जैसे फूल पर कोई फूल हो यूँ बहे नदी तेरी याद की, मैं बहूँ यहाँ या के न बहूँ मैं बहूँ यहाँ या के न बहूँ सुन चाँद मेरी ये दास्ताँ