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मुकेश क्यों झुकी-झुकी हैं पलकें क्यों झुकी-झुकी हैं पलकें, मेरी जां ये बात क्या है क्यों झुकी-झुकी हैं पलकें, मेरी जां ये बात क्या है लता मेरे दिल मैं कैसे कह दूँ मेरे दिल मैं कैसे कह दूँ, मुझे प्यार हो गया है मुकेश क्यों झुकी-झुकी हैं पलकें मुकेश तुझे देखने की ख़ातिर, तेरे दर पे आ गए है के बहार की ज़ुबान से, तेरा नाम सुन चुके हैं लता ओ जनम-जनम के साथी, तुझे हम भी जानते है मुकेश ये चमन महेक रहा है लता महेके तो हर्ज़ क्या है मेरे दिल मैं कैसे कह दूँ, मुझे प्यार हो गया है मुकेश क्यों झुकी-झुकी हैं पलकें लता ये घटा भी आज हम पर मोती लुटा रही है हमें देख कर कली भी सर को झुका रही है मुकेश मेरे दिल की बात सुनने ये हवा भी आ रही है लता ये गगन भी देखता हैं मुकेश देखे तो हर्ज क्या हैं क्यों झुकी -झुकी पलकें, मेरी जाँ ये बात क्या हैं क्यों झुकी-झुकी हैं पलकें मुकेश ये शरम न हमसे कीजे, हम भी तो हैं तुम्हारे किरनों से माँग भर दें, कर दो अगर इशारे लता दिल गा रहा है नग़मा बस में नहीं हमारे मुकेश मौसम भी झूमता हैं लता झूमें तो हर्ज क्या हैं मेरे दिल मैं कैसे कह दूँ, मुझे प्यार हो गया हैं मुकेश क्यों झुकी -झुकी पलकें, मेरी जाँ ये बात क्या हैं क्यों झुकी-झुकी हैं पलकें