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मुकेशअपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होतातो कितना अच्छा होतातो कितना अच्छा होता
लता प्यार की रात का कोई न सवेरा होतातो कितना अच्छा होतातो कितना अच्छा होता
मुकेश अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होतातो कितना अच्छा होता तो कितना अच्छा होता
मुकेश पास रह कर भी बहुत दूर बहुत दूर रहेएक बन्धन में बँधे फिर भी तो हम दूर रहेपास रह कर भी बहुत दूर बहुत दूर रहेएक बन्धन में बँधे फिर भी तो हम दूर रहेमेरी राहों में न उलझन का अँधेरा होतातो कितना अच्छा होतातो कितना अच्छा होता
लता दिल मिले आँख मिली प्यार न मिलने पाएबाग़बाँ कहता है दो फूल न खिलने पाएँदिल मिले आँख मिली प्यार न मिलने पाएबाग़बाँ कहता है दो फूल न खिलने पाएँअपनी मंज़िल को जो काँटों ने घेरा होतातो कितना अच्छा होतातो कितना अच्छा होता
मुकेश अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होतातो कितना अच्छा होतातो कितना अच्छा होता
मुकेश अजब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं जग वाले
लता मिलें तो आग उगल दें फटें तो धुआँ करें
मुकेशअजब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं जग वाले
मुकेश और लता अपनी दुनिया में भी सुख चैन का फेरा होतातो कितना अच्छा होतातो कितना अच्छा होता अपनी उल्फ़त पे ज़माने का न पहरा होतातो कितना अच्छा होतातो कितना अच्छा होता