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अक्द का एहसास भी होता है क्या शै-बाख़ुदा दोस्तों तुम को सुनाता हूँ मैं खास एक वाक्या अक्दका एहसास भी होता है क्या शै -बाख़ुदा दोस्तों तुम को सुनाता हूँ मैं खास एक वाक्या
एक दिन अफ़सुर्दा बैठे थे हबीब-ए-किबरिया फ़ातिमा का अक्द किस से हो थी फ़िक़्र-ए-मुस्तफ़ा अर्श से जिब्रील आ कर बोले शाह-ए-अम्बिया क्यों परेशाँ हो रहे हैं पूछता है ये ख़ुदा पेश-ए-ख़िदमत हूँ ख़ुदा-ए-पाक का भेजा हुआ निस्बत-ए-ज़ेहरा में लाया हूँ न ग़म कीजे ज़रा
फकत ये इरशाद है महबूब-ए-हक़ ऐ मुस्तबा मैंने जिस दम फ़ातिमा को दहर में पैदा किया उसका शौहर कौन होगा इल्म में क्या ये न था ब्याह से बेटी के अफ़सुर्दा न हो दिल में ज़रा आपकी बेटी को बक्शा है ये मैंने मर्तबा उसको मालिक कर दिया है मैंने बाग़-ए-खुल्द का
ऐ मोहम्मद फ़ातिमा है गोशवारा अर्श का होगी मंसूब उस से जो है शेर हक़ का बाख़ुदा उसकी ख़ातिर ये बनी और इसकी ख़ातिर वो बना वास्ते ज़ेहरा के शौहर इससे बेहतर होगा क्या नाम है उसका अली और है लक़ब शेरे-ए-ख़ुदा तुम हो सरदार-ए-नबी तो वो अमीर-ए-औलिया
ऐ मोहम्मद याद कीजे आप शब मेराज़ की शेर के मुँह में जो दी थी आपने अंगुशतरी वो निशानी चेहरा-ए-पुरनूर पर है, हैदरी फ़ातिमा की शेरे-ए-हक़ के साथ थी मँगनी हुई कह दिया जो राज़ था फिर भी ख़्याल इतना रहे कुछ मलाल आने न पाये दिल में मेरे शेर के
सुन के ये जिब्रील से बोले हबीब-ए-किबरिया जो मेरे रब की है मर्ज़ी है वो ही मेरी रज़ा शादियाँ ने अर्श पर बजने लगे फिर जाबजा ज़ेहरा का वाली मोहम्मद और अली का था ख़ुदा सर पे सेहरा बाँध कर दुल्हा बने जिस दम अली फर्श से ता-अर्श फिर एक धूम शादी की हुई
आ गये जिब्रील बन कर फिर वकील आवाज़ दी मेहर क्या हो आपका फरमाइये बिन-ते-नबी बोली इसमें उम्मत-ए-अहमद की होगी बहतरी मेहर मेरा बख़्शीश-ए-उम्मत हो मर्ज़ी है मेरी मज़दा-ए-जिब्रील ने आकर सर-ए-महफ़िल दिया मेहर इनका बख़्शीश-ए-उम्मत ही फरमा था गया
हो गये हज़रत भी खुश खुश और ख़ुदा भी खुश हुआ इंतहा ये हो गये इस मेहर से खुश मुर्तज़ा सोचते थे दिल में अपने ये मोहम्मद मुस्तफ़ा फ़ातिमा को याख़ुदा मैं दूँ दहेज़ इस वक़्त क्या आयी फ़ौरन ये सदा सुनिये हबीब-ए-किबरिया दोनों आलम को जहेज़-ए-फ़ातिमा में दे दिया
वो अगर याक़ूत थी तो ये थे ग़ौहर बेबहा ऐसी बनड़ी के लिए था चाहिये ऐसा बना अल-गरज जब हो चुकी कुल रस्में शादी की अदा करके रुख़सत ले गये फिर घर अली शेर-ए-ख़ुदा कुछ दिनों के बाद शेर-ए-हक़ के दो बेटे हुए ऐ बशर आख़िर वही हासिल बने कौनेन के ऐ बशर आख़िर वही हासिल बने कौनेन के