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जो उगता है वो ढलता है समय का चक्र चलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है समय का चक्र चलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है
ये देखो सूर्य का जलवा सुबह को जो निकलता है ये देखो सूर्य का जलवा सुबह को जो निकलता है चमकता है दमकता है मगर संध्या को ढलता है ये उठने और गिरने का सदा यूँ खेल चलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है
अरे इंसा अकड़ मत आज तू अपनी बुलंदी पर अरे इंसा अकड़ मत आज तू अपनी बुलंदी पर ना गिरते देर लगती है समय की एक मंदी पर विधाता ने लिखा जो लेख टाले से ना टलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है समय का चक्र चलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है
जो सिंहासन पे बैठा था किया करता था मनमानी जो सिंहासन पे बैठा था किया करता था मनमानी वो नौकर बनके तेली का चलाता है अरे धानी समय के सामने हर आदमी का कुछ ना चलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है
लगन पंछी की पिंजरे से जिसे ये तोड़ ना सकता लगन पंछी की पिंजरे से जिसे ये तोड़ ना सकता ये टूटा है ये फूटा है बसेरा छोड़ ना सकता समय की बात कीचड़ से यहा पंकज निकलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है समय का चक्र चलता है अरे मानव संभल के चल समय करवट बदलता है जो उगता है वो ढलता है