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क्रोध में भूले राणा सब कुछ गुप्त सभा बुलवाई राज पुरोहित मंत्री आये भोज राज ऊदाबाई करो फैसला सज़ा उसे दे बहु ने लाज गंवाई यवन ने छुआ है मीरा को बात बड़ी दुखदाई
राज पुरोहित ने समझाया सोचो करो न नादानी हुआ है जो कुछ भी हे राणा मीरा जी थीं अनजानी प्राण दंड का हुआ फैसला बात किसी ने न मानी बीच सभा से गये पुरोहित बात न उनको ये भाई
हुकुम हुआ जो मीरा जा डूबे नदी में आधी रात गये मगन हुई मीरा सुन कर के सज सोलह सिंगार नये नटवर आगे नाचन लागी नाचन लागीनटवर आगे नाचन लागी भोज के झर-झर नीर बहे आधी रात को चली डूबनेआधी रात को चली डूबने श्याम मगन मीराबाई
ज्यों ही नदी में मीरा कूदी भोजराज भी कूद पड़े फटा नदी का पानी जैसे बंद किले के द्वार खुले निकल एक टीला अंदर से जिस पर मीरा-भोज खड़े चकित हुए महाराणा सांगा शरमाई ऊदाबाई
मीरा भोज को लेकर राणा महलों में वापस आये भरी सभा में माफ़ी माँगी चरण पकड़ के पछताए धन्य-धन्य मीरा के नटवर साँच को आँच न आ पाए भक्तों के तुम भक्त तुम्हारेभक्तों के तुम भक्त तुम्हारे जिसने लगन लगाईं जिसने लगन लगाईंजब-जब विपद पड़ी भक्तन पर आ कर लाज बचाई आ कर लाज बचाई ब्रज के कृष्ण कन्हाई