न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़ नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह ग़र नहीं हैं मेरे अशआर में मानी न सही न हुई गर मेरे मर ने से तसल्ली न सही
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