कई बार यूँ ही देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है मन तोड़ने लगता है कई बार यूँ ही देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है मन तोड़ने लगता है अन्जानी प्यास के पीछे अन्जानी आस के पीछे मन दौड़ने लगता है राहों में, राहों में, जीवन की राहों में जो खिले हैं फूल फूल मुस्कुराके कौन सा फूल चुरा के, रख लूं मन में सजा के कई बार यूँ ही देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है मन तोड़ने लगता है अन्जानी प्यास के पीछे अन्जानी आस के पीछे मन दौड़ने लगता है जानूँ न, जानूँ न, उलझन ये जानूँ न सुलझाऊं कैसे कुछ समझ न पाऊँ किसको मीत बनाऊँ, किसकी प्रीत भुलाऊँ कई बार यूँ ही देखा है ये जो मन की सीमा रेखा है मन तोड़ने लगता है अन्जानी प्यास के पीछे अन्जानी आस के पीछे मन दौड़ने लगता है
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