ग़म-ए-दिल किस से कहूँ, कोई भी ग़मख़्वार नहीं हैं सभी ग़ैर यहाँ ज़ख़्म-ए-दिल की ये जलन, क़ाबिल-ए-इज़हार नहीं चुप सा रहना है यहाँ सिलसिला टूट गया, प्यार के अफ़सानों का हो गया ख़ाक़ चमन तिनके बिखरा के गई, वो एक पुरज़ुल्म हवा रह गए ग़म के निशाँ ग़म - ए - दिल किस से कहूँ , कोई भी ग़मख़्वार नहीं हैं सभी ग़ैर यहाँ आज अश्क़ों में, बहे जाते हैं टूटे सपने और ये दौर-ए-सितम किस से फ़रियाद करें, कौन सुने दिल की ज़ुबाँ है ये बेदर्द जहाँ ग़म - ए - दिल किस से कहूँ , कोई भी ग़मख़्वार नहीं हैं सभी ग़ैर यहाँ
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