ज़िक्र होता है जब क़यामत का, तेरे जलवों की बात होती है तू जो चाहे तो दिन निकलता है, तू जो चाहे तो रात होती है तुझको देखा है मेरी नज़रों ने, तेरी तारीफ़ हो मगर कैसे के बने ये नज़र ज़ुबाँ कैसे, के बने ये ज़ुबाँ नज़र कैसे ना ज़ुबाँ को दिखाई देता है, ना निग़ाहों से बात होती है ज़िक्र होता है जब क़यामत का, तेरे जलवों की बात होती है तू चली आए मुस्कुराती हुई, तो बिखर जाएं हर तरफ कलियाँ तू चली जाए उठ के पहलू से, तो उजड़ जाएं फूलों की गलियाँ जिस तरफ होती है नज़र तेरी, उस तरफ क़ायनात होती है ज़िक्र होता है जब क़यामत का, तेरे जलवों की बात होती है तू निग़ाहों से ना पिलाए तो, अश्क़ भी पीने वाले पीते हैं वैसे जीने को तो तेरे बिन भी, इस ज़माने में लोग जीते हैं ज़िन्दगी तो उसी को कहते हैं, जो बसर तेरे साथ होती है ज़िक्र होता है जब क़यामत का, तेरे जलवों की बात होती है तू जो चाहे तो दिन निकलता है, तू जो चाहे तो रात होती है
TIMELYRICS ROMANVideoAudioCONCERTKARAOKEINSTRUMENTALANECDOTEDownload