ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं जलता हुआ दिया हूँ मगर रोशनी नहीं ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं जलता हुआ दिया हूँ मगर रोशनी नहीं गो मुद्दतें हुईं हैं किसी से जुदा हुए गो मुद्दतें हुईं हैं किसी से जुदा हुए लेकिन ये दिल की आग अभी तक बुझी नहीं ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए आने को आ चुका था किनारा भी सामने आने को आ चुका था किनारा भी सामने खुद उसके पास ही मेरी नैय्या गई नहीं ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए होंठों के पास आए हँसी क्या मजाल है होंठों के पास आए हँसी क्या मजाल है दिल का मुआमला है कोई दिल्लगी नहीं ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए ये चाँद ये हवा ये फ़ज़ा, सब हैं मादमां ये चाँद ये हवा ये फ़ज़ा, सब हैं मादमां जब तू नहीं तो इन में कोई दिलकशी नहीं ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िन्दगी नहीं
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