आ आ आ आ आज भी उनकी मोहब्बत का तसव्वुर है वो ही आज भी कोई मुझे दाद-ए-वफ़ा देता है आज भी उनकी मोहब्बत का तसव्वुर है वो ही आज भी कोई मुझे दाद-ए-वफ़ा देता है दम सा घुटता है अगर ग़म की सियाह रातों में दम सा घुटता है अगर ग़म की सियाह रातों में शम्मा की लौ कोई चुपके से बढ़ा देता है आज भी कोई मुझे दाद-ए-वफ़ा देता है मैं तो अब अहद-ए-वफ़ा और से कर लूँ लेकिन मैं तो अब अहद-ए-वफ़ा और से कर लूँ लेकिन कोई धीरे से मेरा हाथ दबा देता है कोई धीरे से मेरा हाथ दबा देता है आज भी कोई मुझे दाद-ए-वफ़ा देता है
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