सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना ज़ुबाँ तक ला नहीं सकता जो गाना चाहता है दिल वो ही मैं गा नहीं सकता वो ही मैं गा नहीं सकता सुनाऊँ क्या मिले हैं ग़ैर से हँस कर वो मेरे सामने हाय वो मेरे सामने हाय लगी है ठेस वो दिल पर के मैं बतला नहीं सकता के मैं बतला नहीं सकता सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना ज़ुबाँ तक ला नहीं सकता सुनाऊँ क्या मेरी हसरत भरी नज़रों को अब तक जो नहीं समझा उसे मैं दर्द-ए-दिल अपना कभी समझा नहीं सकता कभी समझा नहीं सकता सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना ज़ुबाँ तक ला नहीं सकता सुनाऊँ क्या सिवा तेरे बहुत हैं हुस्न वाले भी ज़माने में हुस्न वाले भी ज़माने में मगर मुश्किल ये है अब दिल किसी पर आ नहीं सकता किसी पर आ नहीं सकता सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना ज़ुबाँ तक ला नहीं सकता सुनाऊँ क्या
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