तूने रात गँवाईं सोय के दिवस गँवाया खाय के हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय तूने रात गँवाईं सोये के सुमिरन लगन लगाये के मुख से कछु न बोल रे बाहर के पट बंद कर ले अंदर के पट खोल रे माला फेरत जुग हुआ गया न मनका फेर गया न मनका फेर हाथ का मनका छोड़ दे हाथ का मनका छोड़ दे मन का मनका फेर तूने रात गँवाईं दिवस गँवाया खाय के हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय तूने रात गँवाईं सोय के दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय रे जो सुख में सुमिरन करे सो दुख काहे को होय रे सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे दुख में करता याद रे कहे कबीर उस दास कि कहे कबीर उस दास कि कौन सुने फ़रियाद तूने रात गँवाईं सोय के दिवस गँवाया खाय के हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय तूने रात गँवाईं सोय के
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