देखती ही रहो आज दर्पण न तुम प्यार का ये महूरत निकल जायेगा, निकल जयेगादेखती ही रहो आज दर्पण न तुमप्यार का ये महुरत निकल जायेगा, निकल जयेगा
साँस की तो बहुत तेज़ रफ़्तार है और छोटी बहुत है मिलन की घड़ी गूँधते गूँधते ये घटा साँवरी बुझ न जाये कहीं रूप की फुलझड़ीचूड़ियाँ ही न तुम चूड़ियाँ ही न तुम खनखनाती रहो ये शरमशार मौसम बदल जायेगा, बदल जायेगादेखती ही रहो आज दर्पण न तुम
सुर्ख होंठों पे उफ़ ये हँसी मदभरी जैसे शबनम अँगारों की मेहमान हो जादू बुनती हुई ये नशीली नज़र देख ले तो ख़ुदाई परेशान हो मुस्कुरावो न ऐसे मुस्कुरावो न ऐसे चुराकर नज़र आइना देख सूरत मचल जायेगा, मचल जायेगादेखती ही रहो आज दर्पण न तुम
चाल ऐसी है मदहोश मस्ती भरी नींद सूरज सितारों को आने लगी इतने नाज़ुक क़दम चूम पाये अगर सोते सोते बियाबान गाने लगे मत महावर रचाओ मत महावर रचाओ बहुत पाँव में फ़र्श का मरमरी दिल बहल जायेगा, बहल जायेगा देखती ही रहो आज दर्पण न तुम
क्या हुआ खो गयी कौन सी चीज़ है झुक रही है नज़र क्यों इधर से उधर होंठ सहमे हुए बोल बहके हुए है परेशान काजल कदम बेखबर न न पल्लू उठाओ न न पल्लू उठाओ गिराओ नहीं शायरी का नया दौर चल जायेगा, चल जायेगा
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