कैसे कहूँ क्या मन पर बीते सावन के दिन आयेकैसे कहूँ क्या मन पर बीते सावन के दिन आयेसावन के दिन आये बेरीकारी बदरिया छाये आये सावन के दिन आयेसावन के दिन आये बेरीसावन के दिन आये
जब धुंआधार गरजती हुई आती है घटा सोई तक़दीर को मयकश की जगाती है घटा रात भर जागे हैं अब आँख लगी है उनकी कह दो खामोश हो क्यूँ शोर मचाती है घटा सावन के दिन आयेसावन के दिन आये बेरीसावन के दिन आयेहाय सावन के दिन आये
उज़्र-ऐ-महबूब में बेताब हूँ बिस्मिल की तरहतारे बारिश में नहीँ तीर लगाती है घटा जब आते हैं दम- ऐ-बादाकशी वो सागर कैसी इतराती हुई झूमती आती है घटानहीं सावन में मेरे पासमेरे पास वो मैवश ऐ दाग मुझको तड़पाती है बिजली को रुलाती है घटा सावन के दिन आये सावन के दिन आये बेरीकारी बदरिया छाये आयेहाय सावन के दिन आयेसावन के दिन आये बेरीकारी बदरिया छाये आये हाय सावन के दिन आये
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