मुकेश सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं मगर पीड़ा उमर भर साथ चलने को उतारू है सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएंमगर पीड़ा उमर भर साथ चलने को उतारू हैसभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
साथी आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ... आ...
मुकेश हमारा धूप में घर छाँव की क्या बात जानें हम अभी तक तो अकेले ही चले क्या साथ जानें हम बता दें क्या घुटन की घाटियाँ कैसी लगीं हमको सदा नंगा रहा आकाश क्या बरसात जानें हम बहारें दूर से गुज़रें गुज़रती ही चली जाएं मगर पतझड़ उमर भर साथ चलने को उतारू है सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
मुकेश अटारी को धरा से किस तरह आवाज़ दे दें हम मेंहदिया पाँव को क्यों दूर का अन्दाज़ दे दें हम चले शमशान की देहरी वो ही है साथ की संज्ञाबरफ़ के एक बुत को आस्था की आँच क्यों दें हम
हमें अपने सभी बिसरें बिसरते ही चले जाएं मगर सुधियाँ उमर भर साथ चलने को उतारू है सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
NOT IN VIDEOमुकेश सुखों की आँख से तो बांचना आता नहीं हमको सुखों की साख से तो आँकना आता नहीं हमकोचलें चलते रहें उमर भर हम पीर की राहें सुखों की लाज से ढांपना आता नहीं हमको
निहोरे दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं मगर अनबन उमर भर साथ चलने को उतारू है सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
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