मुकेशहरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन नीला नीला ये गगनहरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगनके जिस पे बादलो की पालकी उड़ा रहा पवन दिशाएं देखो रंगभरी दिशाएं देखो रंगभरी चमक रही उमंग भारी ये किस ने फूल फूल पे ये किस ने फूल फूल पे किया श्रृंगार है ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकारये कौन चित्रकार है साथीये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार
मुकेशतपस्वियों सी है अटल ये पर्वतों की चोटियों ये सर्प सी घूमेरदार घेरदार घाटियाँ ध्वजा से ये खड़े हुए ध्वजा से ये खड़े हुए है वृक्ष देवदार के गलीचे ये गुलाब के बगीचे ये बाहर के ये किस कवि की कल्पना ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार ये कौन चित्रकार है साथीये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार
मुकेशकुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो साथीआ हा हा आ हा हाआ हा हा आ हा हा मुकेशइसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो साथीआ हा हा आ हा हा आ हा हा आ हा हा मुकेशचमका लो आज लालिमा चमका लो आज लालिमा अपने ललाट की कण कण से झाँकती तुम्हे छवि विराट की अपनी तो आँख एक है उस की हज़ार है ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार ये कौन चित्रकार है साथीये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार
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