सुख दुख के दोनों पाँव पर इन्सान ये चलता जाता है सुख दुख के दोनों पाँव पर इन्सान ये चलता जाता हैमन काहे को घबराता है मन काहे को घबराता है
दुख जीवन की एक कसौटीदुख जीवन की एक कसौटी मन को परखा जाता है अंगारों से तप कर सोना नई चमक ले आता है नई चमक ले आता हैसुख दुख के दोनों पाँव पर इन्सान ये चलता जाता है
अँधियारा आँचल में अपने छुपा उजाला लाता है देखो दिन को जो रातों का चीर कलेजा आता है चीर कलेजा आता हैसुख दुख के दोनों पाँव पर इन्सान ये चलता जाता है
जो दुख से घबरा कर अपनाजो दुख से घबरा कर अपना जीवन दीप बुझाता है वो कायर अपने ही हाथों अपने पाप बढ़ाता है अपने पाप बढ़ाता हैसुख दुख के दोनों पाँव पर इन्सान ये चलता जाता है
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