रोने को तो रात पड़ी है दूर कहीं वीराने में शाम की कुछ घड़ियाँ तो ऐ दिल कटने दे मैखाने में
छेड़ न मुझको बादे बहारी जी भर के रो लेने दे आँसू मन का मीत हैं मेरे दर्द भरे अफ़साने में शाम की कुछ घड़ियाँ तो ऐ दिल कटने दे मैखाने में
ठहर गमे दिल चलता हूँ मैं ऐसी भी क्या जल्दी है थोड़ी सी तो बाकी है बस जीवन के पैमाने में शाम की कुछ घड़ियाँ तो ऐ दिल कटने दे मैखाने में
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