उमरे फ़ारूक़े-आज़म की जहाँ में जब खिलाफत थी हर एक इन्सां की इन्सां से बेअंदाज़ा मुहब्बत थी हर एक सू शादमानी फिर हर एक सू फतहोनुसरत थी खलीफा से अरब के बच्चे बूढ़े को मुहब्बत थी खलीफा और खुदा के इश्क़ में मखमूर रहते थे मुहब्बत में मुहम्मद की मुसलमाँ चूर रहते थे पीसर हज़रत उमर का और रसूले पाक के दिलबर हमेशा खेलते थे बच्चे बच्चे मिल के सब अक्सर बढ़ी नाराज़गी बातों ही बातों में तो फिर उस पर कहा शब्बीर ने इब्ने-उमर से यूँ खफा हो कर नबी नाना अलीबाबा बिरादर है हसन मेरा गुलामी में है मेरी तू भी और है बाप भी तेरा सुना शब्बीर ने लफ़्ज़े गुलामी आ गया गुस्सा कहा जा कर पिसर ने होता तदारूक इसका ऐ बाबा गुलाम अपना मुझे और आपको सरवर ने फरमाया ये सुनते ही उमर बोले मुक़द्दर अब तेरा चमका खुदा के लाडले है वो नवासे मुस्तफा के है है मालिक खुल्द के वो और बेटे मुर्तज़ा के है कहा फिर ये उमर ने बेटे से तस्दीक कैसे हो अगर लिखवा के ले आओ तो मैं समझूँ के सच्चे हो कहा इब्ने उमर ने आक जो शब्बीर बनते हो गुलाम अपना हमे लिख दो जुबां से तुम जो कहते हो कहा शब्बीर ने हमसे सनद तो सब ही लेते है गुलाम इब्ने-गुलाम अपना तुम्हे हम लिख के देते है दिया हज़रत उमर को बेटे ने शब्बीर की लिखा लगा कर आँखों से हज़रत उमर ने उसको फिर चूमा बताऊँ क्या मसर्रत का ख़ुशी में जो आलम था सनद पा कर गुलामी की उमर ने फिर फरमाया शरमहसर खुदा के सामने जिस वक़्त जाऊँगा गुलामी की सनद में आले एहमद की दिखाऊंगा अज़ाबे कब्र क्या है फिर जमीं भी उससे थर्राये गुलामी आले एहमद का शर्फ़ दुनिया में जो पाए न क्यूँ खुल्दे बरी उसके लिए निराश हो जाएं उसे खटका हो क्यूँ मशहर का क्यूँ दोज़ख से घबराए न क्यूँ डंका बजे दुनिया में उसकी नेकनामी का शर्फ़ जिसको मिले आले-मुहम्मद की गुलामी का वसीयत अपने बेटे को ये दी फ़ारूक़े-आज़म ने कफ़न में साथ रख देना गुलामी की सनद मेरे रहे ताहश मुझको फक्र इस दर की गुलामी से कि जिनके सदके में सारे मुसलमाँ बक्शे जाएंगे बशर में यूँ नाज़ हासिल था उमर फ़ारूक़े आज़म को मिली है आले एहमद से गुलामी की सनद हमको
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