गाऊँ कहाँ तक गुण मैं तेरे ब्रज के कृष्ण कन्हाई जब-जब विपद पड़ी भक्तन पर आ कर लाज बचाई ब्रज के कृष्ण कन्हाई
किसी समय चित्तौड़ में मीरा भक्ति का अवतार हुई भक्ति का अवतार हुईसास-ससुर को बहु न भाई सोचे कुल की लाज गई पुत्र-वधु राणा सांगा की घुँघरू बांधे नाच रही घुँघरू बांधे नाच रहीएक तरफ थी बैरन दुनिया एक तरफ मीराबाई
सूर्य किरण सी भक्ति फैली अकबर शाह ने जाना तानसेन को पास बुलाकर पूछा ये बतलाना कौन है ये मीरा जी जिसकी चर्चा करें ज़माना छोड़ के दुनियादारी जिसने ख़ुदा से लौ है लगाई
चित्तौड़ पति की पुत्र वधु है तानसेन ने बतलाया दरशन करने जाएंगे हम अकबर ने जब फ़रमाया काँप उठे सुनकर तानसेन जी बोले- काहे भुलाया जनम के बैरी आपके राणा ये क्या दिल में आई
लाख कहा पर शाह न माने जा पहुंचे जोगी बनकर भेंट धरी हीरों की माला प्रभु भक्ति में खो कर शंका की मीरा ने पूछा पाई कहाँ जोगी हो कर नदी किनारे पाई मैनें शाह ने बात बनाई
लौट गए अकबर दिल्ली को जग ने मौका पाया भ्रष्ट हो गई मीरा रानी राणा जी को बहकाया शाही ख़ज़ाने के ये हीरे अकबर यहाँ पे आया भक्ति भाव तो ढोंग है कहते दुनिया नहीं लजाई दुनिया नहीं लजाई
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