मैं अग्नि देश से आता हूँ अब लूटो राख लुटाता हूँ मैं अग्नि देश से आता हूँमैं अग्नि देश से आता हूँ
झुलस गया तन झुलस गया मन झुलस गया कवि-कोमल जीवन किंतु अग्नि-वीणा पर अपने जले कंठ से गाता हूँ अब लूटो राख लुटाता हूँमैं अग्नि देश से आता हूँमैं अग्नि देश से आता हूँ
स्वर्ण शुद्ध कर लाया जग में मैं लाया जग मेंउसे लुटाता आया में उसे लुटाता आया मेंदीनों का मैं वेश किये पर दीन नहीं हूँ दाता हूँ अब लूटो राख लुटाता हूँमैं अग्नि देश से आता हूँमैं अग्नि देश से आता हूँ
तुमने अपने कर फैलाए लेकिन देर बड़ी कर आए कंचन तो लुट चुका पथिक अब लूटो राख लुटाता हूँअब लूटो राख लुटाता हूँमैं अग्नि देश से आता हूँमैं अग्नि देश से आता हूँ
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