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नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहीं नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहींअब यह शीशा किसी तस्वीर के क़ाबिल ही नहीं नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहीं
फेर ली मुझसे नज़र अपनों ने बेगानों ने फेर ली मुझसे नज़र अपनों ने बेगानों ने मेरा घर लूटा मेरे घर के ही मेहमानों ने मेरा घर लूटा मेरे घर के ही मेहमानों ने जो मुझसे प्यार करे ऐसा कोई दिल ही नहीं मैं कहाँ जाऊँ कि मेरी कोई मंज़िल ही नहीं नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहीं
दिल बहल जाए ख़यालात का रुख़ मोड़ सकूँ दिल बहल जाए ख़यालात का रुख़ मोड़ सकूँ मैं जहाँ बैठ के हर अहद-ए-वफ़ा तोड़ सकूँ मैं जहाँ बैठ के हर अहद-ए-वफ़ा तोड़ सकूँ मेरी तक़दीर में ऐसी कोई महफ़िल ही नहीं मैं कहाँ जाऊँ कि मेरी कोई मंज़िल ही नहीं नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहीं
दो जहाँ शोक में हैं आज फ़िज़ा भी चुप है दो जहाँ शोक में हैं आज फ़िज़ा भी चुप है किससे फ़रियाद करूँ अब तो ख़ुदा भी चुप है किससे फ़रियाद करूँ अब तो ख़ुदा भी चुप है ये वो अफ़साना हैं जो सुनने के क़ाबिल ही नहीं मैं कहाँ जाऊँ कि मेरी कोई मंज़िल ही नहीं नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहींअब यह शीशा किसी तस्वीर के क़ाबिल ही नहींमैं कहाँ जाऊँ कि मेरी कोई मंज़िल ही नहीं नाज़ था जिस पे मेरे सीने में वो दिल ही नहीं