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मैया मोरी, ओ मैं नहीं माखन खायो मैया मोरी होमैं नहीं माखन खायोकहत सुनत में आकर काहे झूठा दोष लगायोरे मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायोमैया मोरी, हो मैं नहीं माखन खायो हो
यमुना के तट पर ग्वाल- बाल संग चार पहर मैं खेलाओ गैय्या चरावत बंसी बजावत भई साँझ की बेलाभूख लगी तो दौड़त दौड़त सीधा मैं घर आयोरे मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायोमैया मोरी, हो मैं नहीं माखन खायो हो
न कोई मैंने मटकी फोड़ी न कोई की चोरी ओजान लिया क्यों मुझको झूठा तूने मैया मोरी अपने अंग को कैसे समझा तूने आज परायो रे मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायोमैया मोरी, हो मैं नहीं माखन खायो हो
मैं तो बाबा नन्द का लाला, काहे चोर कहाऊँओअपने घर में कौन कमी जो बाहर माखन खाऊँ बात सुनी तो मात यशोदा, हँसकर कंठ लगायोफिर बोली तू नहीं माखन खायोगोविंदा मोरे, तू नहीं माखन खायो रे कृष्णा मोरे, तू नहीं माखन खायो