किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई 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बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
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रामायण-बाल काण्ड (भाग 2)

मुकेश
मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी
गई भवानी भवन बहोरी बंदि चरन बोली कर जोरी
जय जय गिरिबरराज किसोरी जय महेस मुख चंद चकोरी
जय गज बदन षड़ानन माता जगत जननि दामिनि दुति गाता
मोर मनोरथु जानहु नीकें बसहु सदा उर पुर सबही कें
बिनय प्रेम बस भई भवानी खसी माल मूरति मुसुकानी
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ

कृष्णा
सुनु सिय सत्य असीस हमारी पूजिहि मन कामना तुम्हारी
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो

कृष्णा और पुष्पा
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली

मुकेश
हृदयँ सराहत सीय लोनाई गुर समीप गवने दोउ भाई
सुमन पाइ मुनि पूजा कीन्ही पुनि असीस दुहु भाइन्ह दीन्ही
सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे रामु लखनु सुनि भए सुखारे
सतानंदु तब जनक बोलाए कौसिक मुनि पहिं तुरत पठाए
पुनि मुनिबृंद समेत कृपाला देखन चले धनुषमख साला
सब मंचन्ह ते मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल
मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल
जानि सुअवसरु सीय तब पठई जनक बोलाई
चतुर सखीं सुंदर सकल सादर चलीं लवाईं
चलिं संग लै सखीं सयानी गावत गीत मनोहर बानी
रंगभूमि जब सिय पगु धारी देखि रूप मोहे नर नारी
पानि सरोज सोह जयमाला अवचट चितए सकल भुआला
सीय चकित चित रामहि चाहा भए मोहबस सब नरनाहा
मुनि समीप देखे दोउ भाई लगे ललकि लोचन निधि पाई
गुरजन लाज समाजु बड़ देखि सीय सकुचानि
लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर आनि

सुरेन्द्र और अम्बर
बोले बंदी बचन बर सुनहु सकल महिपाल
पन बिदेह कर कहहिं हम भुजा उठाइ बिसाल

मुकेश
नृप भुजबल बिधु सिवधनु राहू गरुअ कठोर बिदित सब काहू
रावनु बानु महाभट भारे देखि सरासन गवँहिं सिधारे
सोइ पुरारि कोदंडु कठोरा राज समाज आजु जोइ तोरा
त्रिभुवन जय समेत बैदेहीबिनहिं बिचार बरइ हठि तेही
सुनि पन सकल भूप अभिलाषे भटमानी अतिसय मन माखे
परिकर बाँधि उठे अकुलाई चले इष्टदेवन्ह सिर नाई
तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप उठइ न चलहिं लजाइ
मनहुँ पाइ भट बाहुबलु अधिकु अधिकु गरुआइ
भूप सहस दस एकहि बारा लगे उठावन टरइ न टारा
डगइ न संभु सरासन कैसें कामी बचन सती मनु जैसें
श्रीहत भए हारि हियँ राजा बैठे निज निज जाइ समाजा
नृपन्ह बिलोकि जनकु अकुलाने बोले बचन रोष जनु साने
दीप दीप के भूपति नाना आए सुनि हम जो पनु ठाना
कुअँरि मनोहर बिजय बड़ि कीरति अति कमनीय
पावनिहार बिरंचि जनु रचेउ न धनु दमनीय
अब जनि कोउ माखै भट मानी बीर बिहीन मही मैं जानी
तजहु आस निज निज गृह जाहू लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू
सुकृत जाइ जौं पनु परिहरऊँ कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ
जो जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई
बिस्वामित्र समय सुभ जानी बोले अति सनेहमय बानी
उठहु राम भंजहु भवचापा मेटहु तात जनक परितापा
सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा हरषु बिषादु न कछु उर आवा
ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएँ ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ
उदित उदयगिरि मंच पर रघुबर बालपतंग
बिकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भृंग
तब रामहि बिलोकि बैदेही सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही
मनहीं मन मनाव अकुलानी होहु प्रसन्न महेस भवानी
करहु सफल आपनि सेवकाई करि हितु हरहु चाप गरुआई
गननायक बरदायक देवा आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा
बार बार बिनती सुनि मोरी करहु चाप गुरुता अति थोरी
देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर
भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर
सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी धरि धीरजु प्रतीति उर आनी
तन मन बचन मोर पनु साचा रघुपति पद सरोज चितु राचा
तौ भगवानु सकल उर बासी करिहिं मोहि रघुबर कै दासी
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू सो तेहि मिलइ न कछु संहेहू
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना कृपानिधान राम सबु जाना
सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसे चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसे
राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि
चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि
देखी बिपुल बिकल बैदेही निमिष बिहात कलप सम तेही
का बरषा सब कृषी सुखानें समय चुकें पुनि का पछितानें
गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा भरे भुवन धुनि घोर कठोरा

प्रदीप और अम्बर
प्रभु दोउ चापखंड महि डारे देखि लोग सब भए सुखारे

कृष्णा और पुष्पा
रही भुवन भरि जय जय बानी धनुषभंग धुनि जात न जानी

प्रदीप और अम्बर
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी भंजेउ राम संभुधनु भारी

कृष्णा और पुष्पा
सखिन्ह सहित हरषी अति रानी सूखत धान परा जनु पानी

प्रदीप और अम्बर
सतानंद तब आयसु दीन्हा सीताँ गमनु राम पहिं कीन्हा

कृष्णा और पुष्पा
गावहिं छबि अवलोकि सहेली सियँ जयमाल राम उर मेली

साथी
रघुबर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन
सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन

मुकेश
पुर अरु ब्योम बाजने बाजे खल भए मलिन साधु सब राजे
सुर किंनर नर नाग मुनीसा जय जय जय कहि देहिं असीसा

मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी
तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा आयसु भृगुकुल कमल पतंगा
देखत भृगुपति बेषु कराला उठे सकल भय बिकल भुआला
पितु समेत कहि कहि निज नामा लगे करन सब दंड प्रनामा
जनक बहोरि आइ सिरु नावा सीय बोलाइ प्रनामु करावा
बिस्वामित्रु मिले पुनि आई पद सरोज मेले दोउ भाई
रामहि चितइ रहे थकि लोचन रूप अपार मार मद मोचन
अति रिस बोले बचन कठोरा कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा
बेगि देखाउ मूढ़ न त आजू उलटउँ महि जहँ लहि तव राजू
अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं कुटिल भूप हरषे मन माहीं
सुर मुनि नाग नगर नर नारीसोचहिं सकल त्रास उर भारी
मन पछिताति सीय महतारी बिधि अब सँवरी बात बिगारी
भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता अरध निमेष कलप सम बीता
सभय बिलोके लोग सब जानि जानकी भीरु
हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले श्रीरघुबीरु
नाथ संभुधनु भंजनिहारा होइहि केउ एक दास तुम्हारा
आयसु काह कहिअ किन मोही सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही
सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा सहसबाहु सम सो रिपु मोरा
सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने बोले परसुधरहि अपमाने
बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं
एहि धनु पर ममता केहि हेतू सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू
रे नृप बालक कालबस बोलत तोहि न सँमार
धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार
लखन कहा हँसि हमरें जाना सुनहु देव सब धनुष समाना
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू
बोले चितइ परसु की ओरा रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी अहो मुनीसु महा भटमानी
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू चहत उड़ावन फूँकि पहारू
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबर कोपु कृसानु
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु
सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना बालक बचनु करिअ नहिं काना
छमहु चूक अनजानत केरी चहिअ बिप्र उर कृपा घनेरी
बिप्रबंस कै असि प्रभुताई अभय होइ जो तुम्हहि डेराई
सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के उघरे पटल परसुधर मति के
राम रमापति कर धनु लेहू खैंचहु मिटै मोर संदेहू
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ परसुराम मन बिसमय भयऊ
जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात
जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु अमात

अम्बर
जय रघुबंस बनज बन भानू गहन दनुज कुल दहन कृसानु
जय सुर बिप्र धेनु हितकारी जय मद मोह कोह भ्रम हारी
करौं काह मुख एक प्रसंसा जय महेस मन मानस हंसा
अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता छमहु छमामंदिर दोउ भ्राता

मुकेश
कहि जय जय जय रघुकुलकेतू भृगुपति गए बनहि तप हेतू

सुरेन्द्र और अम्बर
देवन्ह दीन्हीं दुंदुभीं प्रभु पर बरषहिं फूल
हरषे पुर नर नारि सब मिटी मोहमय सूल

मुकेश
जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा
मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं अब जो उचित सो कहिअ गोसाई
कह मुनि सुनु नरनाथ प्रबीना रहा बिबाहु चाप आधीना
टूटतहीं धनु भयउ बिबाहू सुर नर नाग बिदित सब काहु
तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु
बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु
दूत अवधपुर पठवहु जाई आनहिं नृप दसरथहि बोलाई
मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला पठए दूत बोलि तेहि काला
बहुरि महाजन सकल बोलाए आइ सबन्हि सादर सिर नाए
हाट बाट मंदिर सुरबासा नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा
रचहु बिचित्र बितान बनाई सिर धरि बचन चले सचु पाई
बिधिहि बंदि तिन्ह कीन्ह अरंभा बिरचे कनक कदलि के खंभा

सुरेन्द्र और अम्बर
हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल
रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरंचि कर भूल

कृष्णा और पुष्पा
सुरन्ह सुमंगल अवसरु जाना बरषहिं सुमन बजाइ निसाना
सिव ब्रह्मादिक बिबुध बरूथा चढ़े बिमानन्हि नाना जूथा
प्रेम पुलक तन हृदयँ उछाहू चले बिलोकन राम बिआहू
देखि जनकपुरु सुर अनुरागे निज निज लोक सबहिं लघु लागे

मुकेश
सजि आरती अनेक बिधि मंगल सकल सँवारि
चलीं मुदित परिछनि करन गजगामिनि बर नारि

कृष्णा और पुष्पा
नयन नीरु हटि मंगल जानी परिछनि करहिं मुदित मन रानी
करि आरती अरघु तिन्ह दीन्हा राम गमनु मंडप तब कीन्हा

अम्बर
समयँ समयँ सुर बरषहिं फूला

सुरेन्द्र और अम्बर
सांति पढ़हिं महिसुर अनुकूला

कृष्णा और पुष्पा
एहि बिधि रामु मंडपहिं आए अरघु देइ आसन बैठाए
बैठारि आसन आरती करि निरखि बरु सुखु पावहीं
मनि बसन भूषन भूरि वारहिं नारि मंगल गावहीं

सुरेन्द्र और अम्बर
नारि मंगल गावहीं

कृष्णा और पुष्पा
ब्रह्मादि सुरबर बिप्र बेष बनाइ कौतुक देखहीं
अवलोकि रघुकुल कमल रबि छबि सुफल जीवन लेखहीं

सुरेन्द्र और अम्बर
सुफल जीवन लेखहीं
मंडपु बिलोकि बिचीत्र रचनाँ रुचिरताँ मुनि मन हरे
निज पानि जनक सुजान सब कहुँ आनि सिंघासन धरे

कृष्णा और पुष्पा
कुल इष्ट सरिस बसिष्ट पूजे बिनय करि आसिष लही
कौसिकहि पूजत परम प्रीति कि रीति तौ न परै कही

मुकेश
कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहींनयन लाभु सब सादर लेहीं
राम सीय सुंदर प्रतिछाहीं जगमगात मनि खंभन माहीं
मनहुँ मदन रति धरि बहु रूपा देखत राम बिआहु अनूपा
राम सीय सिर सेंदुर देहीं सोभा कहि न जाति बिधि केहीं

प्रदीप और सुरेन्द्र
भरि भुवन रहा उछाहु राम बिबाहु भा सबहीं कहा
केहि भाँति बरनि सिरात रसना एक यहु मंगलु महा
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु ब्याह साज सँवारि कै
माँडवी श्रुतिकीरति उरमिला कुअँरि लईं हँकारि के
कुसकेतु कन्या प्रथम जो गुन सील सुख सोभामई
सब रीति प्रीति समेत करि सो ब्याहि नृप भरतहि दई
जानकी लघु भगिनी सकल सुंदरि सिरोमनि जानि कै
सो तनय दीन्ही ब्याहि लखनहि सकल बिधि सनमानि कै
जेहि नामु श्रुतकीरति सुलोचनि सुमुखि सब गुन आगरी
सो दई रिपुसूदनहि भूपति रूप सील उजागरी

मुकेश
सहित बधूटिन्ह कुअँर सब तब आए पितु पास
सोभा मंगल मोद भरि उमगेउ जनु जनवास
चली बरात निसान बजाई मुदित छोट बड़ सब समुदाई
जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा
आए ब्याहि रामु घर जब तें बसइ अनंद अवध सब तब तें