किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल दूजे के 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बोल दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
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रामायण-सुन्दर काण्ड

मुकेश
मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी
जामवंत के बचन सुहाए सुनि हनुमंत हृदय अति भाए
बार बार रघुबीर सँभारी तरकेउ पवनतनय बल भारी
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता चलेउ सो गा पाताल तुरंता
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना एही भाँति चलेउ हनुमाना
जात पवनसुत देवन्ह देखा जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा सुनत बचन कह पवनकुमारा
राम काजु करि फिरि मैं आवौं सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं
तब तव बदन पैठिहउँ आई सत्य कहउँ मोहि जान दे माई
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा तासु दून कपि रूप देखावा
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा मागा बिदा ताहि सिरु नावा
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा बुधि बल मरमु तोर मै पावा

कृष्णा और पुष्पा
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान

मुकेश
सैल बिसाल देखि एक आगें ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें
गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी

साथी
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं

सुरेन्द्र और अम्बर
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं

मुकेश
मसक समान रूप कपि धरी लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी
नाम लंकिनी एक निसिचरी सो कह चलेसि मोहि निंदरी
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा मोर अहार जहाँ लगि चोरा
मुठिका एक महा कपि हनी रुधिर बमत धरनीं ढनमनी
पुनि संभारि उठि सो लंका जोरि पानि कर बिनय संसका

वाणी
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा
बिकल होसि तैं कपि कें मारे तब जानेसु निसिचर संघारे
तात मोर अति पुन्य बहूता देखेउँ नयन राम कर दूता
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा हृदयँ राखि कौसलपुर राजा

मुकेश
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना पैठा नगर सुमिरि भगवाना
मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा देखे जहँ तहँ अगनित जोधा
गयउ दसानन मंदिर माहीं अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं
सयन किए देखा कपि तेही मंदिर महुँ न दीखि बैदेही
भवन एक पुनि दीख सुहावा हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा
लंका निसिचर निकर निवासा इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा
मन महुँ तरक करै कपि लागा तेहीं समय बिभीषनु जागा
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा
बिप्र रुप धरि बचन सुनाए सुनत बिभीषण उठि तहँ आए
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता देखी चहउँ जानकी माता
जुगुति बिभीषन सकल सुनाई चलेउ पवनसुत बिदा कराई
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ बन असोक सीता रह जहवाँ

साथी
निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन

मुकेश
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा संग नारि बहु किएँ बनावा
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी मंदोदरी आदि सब रानी
तव अनुचरीं करउँ पन मोरा एक बार बिलोकु मम ओरा
तृन धरि ओट कहति बैदेही सुमिरि अवधपति परम सनेही
सठ सूने हरि आनेहि मोहि अधम निलज्ज लाज नहिं तोही
सीता तैं मम कृत अपमाना कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई

साथी
भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद
सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद0

मुकेश
त्रिजटा नाम राच्छसी एका राम चरन रति निपुन बिबेका
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना सीतहि सेइ करहु हित अपना
त्रिजटा सन बोली कर जोरी मातु बिपति संगिनि तैं मोरी
तजौं देह करु बेगि उपाई दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई
आनि काठ रचु चिता बनाई मातु अनल पुनि देहि लगाई
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी अस कहि सो निज भवन सिधारी
सुनहि बिनय मम बिटप असोका सत्य नाम करु हरु मम सोका
नूतन किसलय अनल समाना देहि अगिनि जनि करहि निदाना

सुरेन्द्र और अम्बर
देखि परम बिरहाकुल सीता सो छन कपिहि कलप सम बीता
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब
जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ

मुकेश
तब देखी मुद्रिका मनोहर राम नाम अंकित अति सुंदर
चकित चितव मुदरी पहिचानी हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी
सीता मन बिचार कर नाना मधुर बचन बोलेउ हनुमाना

सुरेन्द्र और अम्बर
राम दूत मैं मातु जानकी सत्य सपथ करुनानिधान की
जौं रघुबीर होति सुधि पाई करते नहिं बिलंबु रघुराई
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई

मुकेश
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना होहु तात बल सील निधाना
अजर अमर गुननिधि सुत होहू करहुँ बहुत रघुनायक छोहू
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता आसिष तव अमोघ बिख्याता
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा लागि देखि सुंदर फल रूखा
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु

मुकेश
मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा फल खाएसि तरु तोरैं लागा
रहे तहाँ बहु भट रखवारे कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे
सुनि रावन पठए भट नाना तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना
सब रजनीचर कपि संघारे गए पुकारत कछु अधमारे
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा चला संग लै सुभट अपारा
आवत देखि बिटप गहि तर्जा ताहि निपाति महाधुनि गर्जा
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना पठएसि मेघनाद बलवाना
चला इंद्रजित अतुलित जोधा बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा
कपि देखा दारुन भट आवा कटकटाइ गर्जा अरु धावा
अति बिसाल तरु एक उपारा बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई ताहि एक छन मुरुछा आई
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया जीति न जाइ प्रभंजन जाया
ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार
तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ नागपास बाँधेसि लै गयऊ
कह लंकेस कवन तैं कीसा केहिं के बल घालेहि बन खीसा
सुन रावन ब्रह्मांड निकाया पाइ जासु बल बिरचित माया
जाकें बल बिरंचि हरि ईसा पालत सृजत हरत दससीसा
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि
तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना
सुनत निसाचर मारन धाए सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए
नाइ सीस करि बिनय बहूता नीति बिरोध न मारिअ दूता

सुनत बिहसि बोला दसकंधर अंग भंग करि पठइअ बंदर
कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ

सुरेन्द्र और अम्बर
पावक जरत देखि हनुमंता भयउ परम लघु रुप तुरंता
निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं भई सभीत निसाचर नारीं
जारा नगरु निमिष एक माहीं एक बिभीषन कर गृह नाहीं
उलटि पलटि लंका सब जारी कूदि परा पुनि सिंधु मझारी

मुकेश
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि
जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि

सुरेन्द्र और अम्बर
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा

मुकेश
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ हरष समेत पवनसुत लयऊ

कृष्णा और पुष्पा
कहेहु तात अस मोर प्रनामा सब प्रकार प्रभु पूरनकामा
दीन दयाल बिरिदु संभारी हरहु नाथ मम संकट भारी

मुकेश
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई परे सकल कपि चरनन्हि जाई
पवनतनय के चरित सुहाए जामवंत रघुपतिहि सुनाए
सुनत कृपानिधि मन अति भाए पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए
सुनु कपि तोहि समान उपकारी नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी
प्रति उपकार करौं का तोरा सनमुख होइ न सकत मन मोरा
सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत
कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा कर गहि परम निकट बैठावा
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा कहा चलैं कर करहु बनावा
अब बिलंबु केहि कारन कीजे तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे
चला कटकु को बरनैं पारा गर्जहि बानर भालु अपारा
केहरिनाद भालु कपि करहीं डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं

सुरेन्द्र और अम्बर
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किन्नर दुख टरे
कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं

मुकेश
एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर
उहाँ निसाचर रहहिं ससंका जब ते जारि गयउ कपि लंका
अवसर जानि बिभीषनु आवा भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा
पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन बोला बचन पाइ अनुसासन

प्रदीप
तात राम नहिं नर भूपाला भुवनेस्वर कालहु कर काला
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही भजहु राम बिनु हेतु सनेही
जासु नाम त्रय ताप नसावन सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन
बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस

मुकेश
सुनत दसानन उठा रिसाई खल तोहि निकट मुत्यु अब आई
जिअसि सदा सठ मोर जिआवा रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा
कहसि न खल अस को जग माहीं भुज बल जाहि जिता मैं नाही
मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा अनुज गहे पद बारहिं बारा
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा रामु भजें हित नाथ तुम्हारा
रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि
मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि
अस कहि चला बिभीषनु जबहीं आयूहीन भए सब तबहीं
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता नयनानंद दान के दाता
बहुरि राम छबिधाम बिलोकी रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी
नयन नीर पुलकित अति गाता मन धरि धीर कही मृदु बाता

प्रदीप
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर

मुकेश
जौं नर होइ चराचर द्रोही आवे सभय सरन तकि मोही
तजि मद मोह कपट छल नाना करउँ सद्य तेहि साधु समाना
अस कहि राम तिलक तेहि सारा सुमन बृष्टि नभ भई अपारा

साथी  
जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ

मुकेश
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति
लछिमन बान सरासन आनू सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे छमहु नाथ सब अवगुन मेरे
नाथ नील नल कपि द्वौ भाई लरिकाई रिषि आसिष पाई
तिन्ह के परस किएँ गिरि भारे तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे

साथी  
निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ
यह चरित कलि मलहर जथामति दास तुलसी गायऊ

मुकेश
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान